About Jobner

जोबनेर एक परिचय

राजस्थान की राजधानी जयपुर के पश्चिम दिशा में सड़क मार्ग से मात्र 45 किलोमीटर, रेल मार्ग आसलपुर – जोबनेर रेलवे स्टेशन से 10 किलोमीटर (दिल्ली –अहमदाबाद मैंने लाइन ) एवं नजदीकी एयर पोर्ट सांगानेर जयपुर से 60 किलोमीटर की दुरी पर स्थित जोबनेर क़स्बा केवल कस्बा ही नही अपितु सम्पूर्ण भारत देश में आध्यात्मिक और शैक्षिक क्षेत्र में अपनी एक अलग पहचान रखता है , जब जोबनेर के अतीत पर नजर डाले तो पता चलता है की भारत के इतिहास में जोबनेर का नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा हुआ है और वर्तमान में जोबनेर का अवलोकन करे तो यह कहने में कोई दो राय नही की अब जोबनेर चहुँ ओर से मेगा हाइवे सडको के माध्यम से राजस्थान के मुख्य बड़े शहरों से जुड़कर शिक्षा , आध्यात्म एवं व्यापार का हब बन चुका है l

जोबनेर ज्वाला माता - आध्यात्मिक केन्द्र

हरे-भरे त्रिकोणीय पर्वत की गोद में स्थित पौराणिक किवदन्तियो के अनुसार चन्द्रवंश मुकुटमणी महाराज ययाति द्वारा अपने पुत्र पुरु के यौवनदान की स्म्रति में वर्तमान जोबनेर को यौवनेर के नाम से बसाया गया था जो आगे चलकर जोबनेर के नाम से पुकारा जाने लगा I जोबनेर प्रचीन काल से ही पर्वत पर स्थित ज्वाला माता के मन्दिर के कारण दूर-दूर तक प्रसिद्ध रहा है , ज्वाला माता के मन्दिर का प्रारूप चौहान काल में संवत् 1296 में बनाया गया I यह खंगारोत , कछवाहों (राजपूतों) की कुल देवी मानी जाती है I जगमाल पुत्र खंगार ज्वाला माता के परम भक्त थे जो की जोबनेर के वीर शासक हुए है, जिनका शासन काल सन 1600 में माना जाता है I इन्ही राव खंगार को ज्वाला माता ने स्वपन में आकर मन्दिर पर बड़ा मंडप बनाने व विशाल मेले का आयोजन करने की प्रेरणा दी थी I उन्होंने 16वीं शताब्दी में बड़े मंडप का निर्माण व मेले का आयोजन प्रारम्भ किया , तब से निरविघ्न रूप से यो तो ज्वाला माता के उपासक प्रतिदिन अधिक से अधिक संख्या में आते रहते है ,परन्तु माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी –नवामी ,माघ मास के गुप्त नवरात्रों ,आषाढ़ मास के गुप्त नवरात्रों एवं आश्विन व चैत्र मास के नवरात्रों में भरी मेला लगता है जिसमे भारत देश के कोने-कोने से लाखों माँ ज्वाला के भक्त माँ के दर्शन कर अपनी मनोकामनाओ को पूर्ण करते है I (Source जोबनेर ज्वाला माता कथा पुस्तक रचियेता कजोड मल सैनी )